दूधनाथ की कहानियों का कथ्य एवं शिल्प
DOI:
https://doi.org/10.8855/qmyz0c27Abstract
दूधनाथ सिंह का कहानीकार अपने समकालीन जीवन की समस्त विसंगतियों से जुड़ा हुआ महसूस करता है, यह जुड़ाव उसे बहुत बेचैन और त्रासद अनुभवों के बीच ला खड़ा करता है। यही कारण है किउनका समस्त लेखन विसंगतियों और आधुनिक जीवन का खालीपन और मानसिक कष्टों से सम्बद्ध दिखाई देता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दूधनाथ सिह मानवीय स्तर पर अपनी सतह को बरकरार रखना चाहते हैं और इसीलिए सुविधाओं के झूठ और आधुनिक समृद्धियों की पीछे छिपी क्रूरताओं को उनकी संवेदना बहुत तीव्रता से महसूस करती है। उनके मनः मष्तिष्क में जो स्वातंत्रय बोध है वह अपने खिलाफ खड़ी हुई सारी स्थितियों से लड़ाई की तथा उतेजना की मुद्रा में, उनके लेखन में मूर्त होता है, हमें कोई बहुत साफ और स्थूल तौर पर उनकी स्वतंत्रता के बिंदु समझ नहीं आते लेकिन तमाम दबावों, विडम्बनाओं और व्यवस्थाओं के प्रति किसी न किसी स्तर पर उनका संघर्ष अवश्य पकड़ में आ जाता है।