“रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी के काव्य में अस्मितामूलक विमर्श”
DOI:
https://doi.org/10.8855/pj59k580Abstract
भारतकी आजादी के लिये स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, समाजसुधारक, साहित्यकार, पत्रकार तथा सामान्य जनता कात्यागरूपी सक्रिय सहभाग रहा हैं I अनेक हिंदी साहित्याकारो ने साहित्य की विविध विधाओ द्वारादेश की स्वतंत्रता के लिये जन जागृती, और जनसहभाग औरअपना सर्वस्व निछावर किया I ऐसे ही देशभक्ति से ओतप्रोत ओजस्वी कवि रामधारीसिंह दिनकर थे I इन्होने स्वतंत्रता आंदोलन के समय भारत की प्राचीन सांस्कृतिक गरिमा का उद्घोष कर जनता में नवचेतना और उत्साह भरा I जोअपने हिम्मत और जिंदगी निबंध मेंकहते है“कि साहस की जिंदगी सबसे बडी जिंदगी होती हैं”Iदिनकर जी के काव्य में निराशा और दुखः के स्थान पर आशा, उमंग,नवचेतना और मानवीय अस्मिता का स्वर अधिक दिखाई देता हैं I इनके काव्य में अतीत की गौरवगाथाऔर वर्तमान की अनेक समस्याओं का समाधान भी हैं I इनके साहित्य रचना की भाषा सुबोध, सरल हैं, अभिव्यक्ति निपट स्पष्ट हैं I साथ ही इनके काव्य साहित्य में अभिष्ट चिंतन भरें विचारों की व्यापकता तथा मानोभावों की तीव्र गहराई हैं | जिससे इनका काव्य समादृत, एवं अनुकरणीय बना हैI इसमे मानवीय अस्मिता के दर्शन अनायास होते हैं I जीवनयापन करते समय जनसामान्य को जिसकी बहुत जरुरत होती हैं I जिसका संरक्षण, संवर्धन एवं कियान्वयन एवं निरंतर विकास करते रहनामानव का परम कर्तव्य हैंIजोमानव को आजीवान उप;उपयोगी होता हैIजिसेदिनकर जी के अपने काव्य साहित्य में उजागर किया हैं |