सामाजिक आंदोलनों और प्रगतिशील विचारों के कारण जातियों के सामाजिक स्तरीकरण
DOI:
https://doi.org/10.8855/qxcv3p96Abstract
मानव जीवन एक गतिशील प्रक्रिया है। सामाजिकता के कारण मनुष्य के मानवीय संबंधों में परिवर्तन होते रहते हैं। यह परिवर्तन मनुष्य जीवन का स्वभाव है। यही परिवर्तन आगे चलकर सामाजिक चेतना में परिवर्तन के कारण बनते हैं। मानव जीवन में आये परिवर्तनों का कारण समाज में भी परिवर्तन होते रहते हैं। इसलिए समाज को एक परिवर्तनशील संगठन भी कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए भी कि समाज की चेतना में भी परिवर्तन होते रहते हैं। प्रारंभ से ही देखा जाय तो समाज कई महापुरूषों, विचारों आदि के प्रभाव में पुरानी और गैरजरूरी पड़ गयी चीजों को त्यागता रहता है और नये को ग्रहण करता रहता है। यहाँ हजारी प्रसाद द्विवेदी के विचारों को इन्हीं संदर्भों की व्याख्या के लिए देखा जा सकता है। समाज के इसी त्याग और ग्रहण को स्पष्ट करते हुए द्विवेदी जी कहते हैं कि ‘यह समाज न जाने कितने ग्रहण और त्याग का परिणाम है।‘