तुलसीदास की समन्वय भावना

Authors

  • गुरमीत कौर Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/wf42n394

Abstract

हिन्दी साहित्य के सन्दर्भ में मध्यकालीन काव्य से तात्पर्य उस काल से है जिसमें मुख्यतः भागवत धर्म के प्रचार-प्रसार के परिणाम स्वरूप भक्ति आन्दोलन का सूत्रपात हुआ था। इस युग में भक्ति केवल वैष्णव धर्म तक ही सीमित नही बल्कि शैव, शात्य आदि धर्मों के अतिरिक्त बौद्ध और जैन सम्प्रदाय तक इस प्रभाव से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। वैदिक भक्ति परम्परा के समानान्तर दक्षिण भारत में द्रविड़ -संस्कृतिगर्भित पृथक शक्ति परम्परा का सूत्रपात हो चुका था जिसमें शरणागति और समर्पण की भावना प्रबल रूप से पायी जाती थी और कालान्तर में दक्षिणात्य आचार्यों द्वारा उत्तर भारत में भी लोकप्रिय बनी और इस प्रकार उत्तर और दक्षिण की दोनों परम्पराओं का मिलन हो गया जिसका निदर्षन आड्यारों तथा आडियारों के भक्ति साहित्य में सुलभ है।

Downloads

Published

2013-2025

Issue

Section

Articles