श्री. रामदरश मिश्र की कहानियों में पारिस्थितिक सजगता

Authors

  • डॉ.अंबिली.टी Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/3ba31c34

Abstract

 

मनुष्य और प्रकृति चिर सहचर रहे थे। पुराने ज़माने में मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए उनकी सुरक्षा पर जागरूक था। लेकिन भूमंडलीकरण, बाज़ारवाद, उदारीकरण आदि के कारण मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है। आज मानव पर्यावरण को भय भक्ति के साथ नहीं देखता। मनुष्यने प्रकृति को बिगाडा है, इसलिये सारा पारिस्थितिक संतुलन भी बिगड़ गया, जिसे बाढ़, सूख आदि रूपों में देखा जा सकता है। पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध अनेक क्षेत्रों में आवाज़ उठाये गये। साहित्यके क्षेत्र में भी इसके सशक्त प्रतिरोध का स्वर हम सुन सकते हैं। हिन्दी कहानियाँ भी इसमें पीछे नहीं।

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2013-2025

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Articles