भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका

Authors

  • सुरेन्द्र कुमार चोरड़िया विद्या संबल Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/bfgjqa66

Abstract

ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष न केवल पुरूषों की बहादुरी से बल्कि महिलाओं की अदम्य भावना से चिन्हित था, जो अपने पुरूष समकक्षों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी थी। स्वतंत्रता की ओर उथल-पुथल भरी यात्रा के दौरान कई महिलाओं ने अटूट दृढ संकलप, लचीलापन और देशभक्ति का प्रदर्शन किया। इन महिलाओं ने विभिन्न भूमिकाऐं निभाई, जिसमें जनता को संगठित करने से लेकर जुलूसों का नेतृत्व करना, विरोध प्रदर्शनों का आयोजन करना और भूमिगत आन्दोलनों में योगदान देना शामिल था।

    भारत देश के स्वाधिनता संग्राम की जब हम बात करते हैं। तो हम सभी पक्षों का अध्ययन करते हैं। चाहे राजनीतिक स्तर पर हो या आर्थिक यदि हम स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं की भूमिका पर दृष्टि नहीं डालते हैं तो यह अध्ययन अधुरा माना जाएगा। राष्ट्रीय आन्दोलन के विभिन्न चरणों में महिलाओं न भारी संख्या में भाग लिया। महिलाओं को पहली बार घर से बाहर किसी गतिविधि में भाग लेने का मौका मिला। भारत देश एक पितृसत्तात्मकता से प्रेरित देश है। पुरूषों के समान महिलाओं को राजनीतिक या सार्वजनिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी। यह महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी जिसे पार करके महिलाओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन में अपनी भूमिका अदा नहीं कि बल्कि राष्ट्रीय आन्दोलन को सशस्त्र व दृढ़ बनाया।

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2013-2024

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Articles