वैदिक वाङ्मय में वर्णित वास्तु निर्माण कला
DOI:
https://doi.org/10.8855/gp3sk585Abstract
वैदिक साहित्य से ज्ञात होता है, वेदकालीन समाज पूर्णतया सुसंस्कृत था, उसने जीवन को सुखी बनाने के लिए वास्तु निर्माण कला का विकास किया था। ऋग्वेद1 में कितने ही स्थलों पर पुर ब्रज आदि का उल्लेख आता है, जिससे तत्कालीन दुर्गा का बोध होता है। दुर्ग मिट्टी के बनाये जाते थे या पत्थर के इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि इतने प्राचीन काल में भी दुर्ग बनाने की कला का विकास हुआ था इसी प्रकार ऋग्वेद में तत्कालीन गृहों का भी उल्लेख आता है। वास्तोष्पति मंत्रों2 में गृह देवताओं की स्तुति की गई है। ऋग्वेद में गृह3 सù4 प्रसù5 दीर्घ प्रसù6 आदि का उल्लेख आता है जिससे स्पष्ट है कि वैदिक काल में छोटे से छोटे व बड़े से बड़े घर बनाये जाते थे। ये घर मिट्टी पत्थर, लकडी अथवा तीनों को मिलाकर बनाये जाते थे। वैदिक युग में घर बनाने की कला बहुत लोकप्रिय थी। यह इससे भी सिद्ध होता है कि ऋग्वेद में साधारण घर के अर्थ में वाबीस शब्द प्रयुक्त हुए है, जैसा कि निघण्टु7 में लिखा है। गृहसूचक बाबीस