पाश्चात्य प्रभाव के कारण भारतीय संस्कृति और साहित्य में परिवर्तन
DOI:
https://doi.org/10.8855/26nvdm13Abstract
पाश्चात्य साहित्य का भारतीय साहित्य पर बड़ा ही प्रभाव रहा है। पश्चिमी साहित्य की रोमांचवाद, अस्तित्ववाद , मनोविश्लेषण आदि प्रवृत्तियों का स्पष्ट प्रभाव भारतीय साहित्य में उपन्यासों कहानियों तथा नाटकों में दिखाई पड़ता है। काव्य में पश्चिम का प्रभाव अतुकांत और प्रगतिवादी कविताओं में देखा जा सकता है। पश्चिम के प्रभाव के कारण ही साहित्य में अनेक विचारधाराएं तथा दृष्टिकोण सामने आए। साहित्य में छोटी कहानियों, एकांकी और नाटकों का प्रचार हुआ । इसके अतिरिक्त साहित्य में धर्मनिरपेक्षता , नास्तिकता,भोगवाद , साम्यवाद प्रगतिवाद तथा स्वतंत्रता, समानता आदि प्रवृतियां पश्चिमी संस्कृति का ही प्रभाव है। जब साहित्यकार कोई रचना रचता है ,तब वह समाज को साहित्य से जोड़ता है। समाज के जुड़ने से तीज –त्यौहार, रीति- रिवाज ,परंपराएं आदि उसमें अपने -आप शामिल हो जाती हैं और वही हमारी संस्कृति है। “ संस्कृति” शब्द संस्कार से बना हैं। गोल्डन वाइजर के अनुसार “संस्कृति के अंतर्गत हमारी धारणाएं, विश्वास एवं विचार ,हमारे निर्णय ,हमारे नैतिक मूल्य , हमारी संस्थाएं,राजनीतिक तथा वैधानिक, धार्मिक तथा आर्थिक ,हमारे विधान एवं शिष्टाचार ,हमारी पुस्तकें और यंत्र, हमारा विज्ञान दर्शन और वह समस्त वस्तुएं तथा प्राणी, दोनों अपने- आप में एवं अनेका -अनेक अंतर -संबंधों के रुप में सम्मिलित हैं।“1