डॉ सुधा अरोड़ा के कथा साहित्य में स्त्री चेतना

Authors

  • कुमारी राजश्री पांडुरंग नामये डॉ. श्रीमती माधुरी जोशी Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/qhrg1k33

Abstract

        इस आधुनिक काल में भी स्त्री अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही है। नारी भी शारीरिक सुख चाहती है जो कि उसके जन्मसिद्ध अधिकार में आती है। स्त्री भी सम्मान के साथ जीना चाहती है। लेकिन समाज के बनाये कायदे-कानून इतने जटिल होते है कि स्त्री को दासता स्वीकार करनी ही पड़ती है। बिना मूल्य के श्रमिक की तरह शारीरिक, मानसिक सेवाएँ देनी पड़ती है। शील और पवित्रता की रक्षा के लिए स्त्री को नैसर्गिक इच्छाओं का दमन करना ही पड़ता है। स्त्री मानसिक झंझावतों को झेलती रहती है और परिवार में सुख-शान्ति कायम रखने का प्रयत्न करती रहती है। सामाजिक परिवेश में सुलह व समझौता ही स्त्री का उत्तम चरित्र कहलाया जाता है। जो स्त्री अपने स्व के लिए नियम नहीं अपनाती वह सुरक्षा के लिहाज से अकेली ही मानी जाती है।

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2013-2024

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Articles