हिंदी आलोचना में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का योगदान
DOI:
https://doi.org/10.8855/gaqf7n31Abstract
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्र थे। उनके व्यक्तित्व की विराटता को शब्दों में बाँध पाना संभव नहीं है । वे बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे । वे मानवतावादी विचारधारा के सर्वश्रेष्ट वाहक, साहित्येतिहास के शोधकर्ता एवं व्याख्याता, भारतीय संस्कृति के संदेशवाहक, अप्रतिम कथाशिल्पी, भाषा लालित्य के प्रतिष्ठापक, अद्वितीय ललित-निबंधकार एवं उदारमना साहित्यकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद सिवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के ग्राम ओझवलिया के छोटे से टोले "आरत दूबे का छपरा" में 20 अगस्त, 1907 ई0 में हुआ था । यह छोटा सा टोला आचार्य जी के प्रपितामह श्री आरत दूबे ने बसाया था । उन्हीं के नाम से इस टोले का नाम चला । आचार्य द्विवेदी के पिता का नाम पं0 अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती परमज्योति देवी था । आचार्य जी का आंशिक जीवन अनेकानेक कठिनाइयों से भरा रहा । घर में आर्थिक विपन्नता थी जिसके कारण उनका अध्ययन भी प्रभावित हुआ । उनका अध्ययन नियमित रूप से नहीं चल पाया । स्वयं के प्रयासों से किसी प्रकार उन्होंने अंग्रेजी की प्रवेश परीक्षा (हाईस्कूल) सन् 1927 में काशी विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । इनके पिता ने ग्राम के किसी व्यक्ति से 40 रुपये उधार लेकर इंटरमीडिएट में प्रवेश दिला दिया। बनारसी दास चतुर्वेदी को लिखे एक पत्र में इसका वर्णन करते हुए आचार्य द्विवेदी कहते हैं - "मुझे याद आता है कि पिताजी ने बड़ी कठिनाई के बाद गाँव के एक व्यक्ति से 40 रूपये उधार लिये थे । यह मेरी इंटरमीडिएट की भर्ती कराई की प्रथम कहानी।