"वर्ण व्यवस्था एवं जाती प्रथा का ऐतिहासिक विश्लेषण "

Authors

  • Dr. Nilima Ojha Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/cgdr4h44

Abstract

 इतिहासकारों के अनुसार प्राचीन भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित था जो समाज श्रृंखला का अभिन्न अंग थी। ऋग्वेद के पुरुषसूक्त के दसवें मंडल  के अनुसार प्राचीन भारतीय समाज   चार वर्णों में विभक्त था ,यह वर्ण थे- ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य तथा शूद्र।पहले तीन को द्विज कहा गया,क्योंकि उनका उपनयन संस्कार होता था।

 वर्ण का शाब्दिक अर्थ रंग है, परंतु उसकी धारणा धर्म से जुड़ी है और वह धर्म संस्कारों से जुड़ा है। संस्कार 16 हैं और वह कर्मों या कार्यों के माध्यम से धर्म की स्थापना में सहायता करते हैं। यहां धर्म का अर्थ  नैतिक आदर्श है जो की एक  समाज के निर्माण की नींव रखता है। इस प्रकार वर्णधर्म सामाजिक न्याय की स्थापना करता है। सभी संस्कारों को करने के लिए आश्रम की व्यवस्था है जो  चार हैं,ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ  और सन्यास और ये कर्म के सिद्धांत पर आधारित हैं और इन सब को मिलाकर वर्णाश्रमधर्म कहा जाता है।

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Published

2013-2024

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Articles