हिंदी साहित्य में वर्णीत भारतीय संस्कृति का स्वरूप एवं मूल्य
DOI:
https://doi.org/10.8855/d7acez22Abstract
संस्कृति को हम मानसिक, नैतिक, भौतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, कलात्मक अथवा मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में सीखे हुए व्यवहार प्रकार की समग्रता कह सकते हैं। संस्कृति का आँगन समाज है इसलिए समाज का संपूर्ण क्रियाविधान संस्कृति की रचना करता है। इन क्रियाविधियों को मानवीय स्तर पर संस्कार कहा सकता है। मनुष्य और प्रकृति दोनों मिलकर संस्कारों की रचना करते हैं। आचार-विचार और संस्कार जीवन-पद्धति के अंग माने जाते हैं। देहेन्द्रिय जनित चेष्टाऍं ‘आचार’ के अन्तर्गत और मन, बुद्धि चित्त अहंकारादि द्वारा की गई समस्त चेष्टाऍं जब अपना स्थिर प्रभाव मानवीय चेतना में ग्रहण कर लेती हैं तब वे संस्कार बन जाती हैं। आचारों-विचारों एवं संस्कारों में सत्-असत् का विभाजन भी हो सकता है। संस्कृति का मूल्य इन्हीं आचरणों के द्वारा आँका जाता है। आध्यात्मिक बौद्धिक एवं सभी प्रकार की सौन्दर्य भावनाओं की संतुष्टि के साथ-साथ आत्मिक आनन्दानुभूति जिन आचरणों के माध्यम से प्राप्त हो वे सभी संस्कृति के रूप में ग्रहण किए जाते हैं। पुरे विश्व में भारतीय संस्कृति सबसे प्रसिद्ध संस्कृति मानी जाती है। भारतीय संस्कृति प्राचीन संस्कृति में से एक है इसलिए इसे बहुत ही उच्चतम संस्कृति माना जाता रहा है। भारतीय संस्कृति में विज्ञान, दर्शन, धर्म इत्यादि पर हजारों साल पहले ही वैदिक ग्रंथों और उपनिषद आदि में विस्तृत चर्चा की गई है। इसलिए भारतीय संस्कृति को पुरे विश्व में सम्मान की दृष्टी से देखा जाता है।