‘निशिकांत’ मृत रुढ़ियों से मुक्ति का प्रयास

Authors

  • सुरुचि गुप्ता Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/r9ygjq27

Abstract

विष्णु प्रभाकर के साहित्य का मूल स्वर मनुष्य की पहचान और हर प्रकार के शोषण से मुक्ति का है। उन्होंने तीसरे दशक में लिखना शुरु किया था और जिर परिप्रेक्ष्य में उनका लेखन परवान चढ़ा, वह उन्हें आदर्शोंन्मुख यथार्थवाद की ओर ही ले जा सकता था। लेकिन वे किसी दल या सिद्धान्त के पक्षधर नहीं बन सके।

Downloads

Published

2013-2024

Issue

Section

Articles