मुगलकाल मे हिंदी
DOI:
https://doi.org/10.8855/8b0mxj78Abstract
अध्ययन की दृष्टि से हिंदी भाषा के विकास को तीन भागों मे विभाजित किया गया है- आदिकाल, मध्यकाल, और आधुनिक काल। आदिकाल मे हिंदी भाषा के तीन रूप दिखाई पड़ते है-अपभ्रंशाभास, पिंगल , डिंगल। 1206 ई. मे मुस्लिम आक्रंताओं ने भारत पर अधिकार कर दिल्ली सल्तनत की स्थापना की। उत्तर भारत मे इस्लामिक शासन की स्थापना के बाद यहां के मूल निवासियों की सामाजिक और साहित्यिक प्रगति मंद हो गई। राजदरबार की भाषा फारसी थी इसीलिए क्षेत्रिय भाषाओं को राजकीय प्रश्रय प्राप्त नही हुआ।विद्वानों ने 1375 वि.सं. से 1700 वि.सं. को भक्ति काल माना है। जार्ज ग्रियर्सन ने इस काल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल कहा है किन्तु वह कहते है किकोई भी भक्तिकाल के प्रादुर्भाव का काल निश्चित नहीं कर सकता।1 इस युग तक हिंदी की तीन स्पष्ट बोलियां विकसित हो गई थी ब्रज भाषा ,अवधि और खड़ी बोली। खड़ी बोली पर अवधी या ब्रजभाषा का प्रभाव दिखाई नही देता है।खड़ी बोली मे संस्कृत के शब्दों की बहुलता करके ही हिंदी भाषा का उद्भव हुआ प्रतीत होता है। डा. सुनीति कुमार चटर्जी खड़ी बोली के साहित्यिक रूप को नागरी हिंदी कहते है। कृष्ण मार्गी कवियों ने हिंदी की ब्रजभाषा को गोर्वांवित किया। अमीर खुसरो ने इसी समय फारसी-हिंदी शब्दकोष की रचना की।2खुसरो की लोकोक्तियां, पहेलियां, मुकरियां वर्तमान मे भी अत्यंत प्रसिध्द है। सल्तनत काल के कवियों मे नामदेव, रामानन्द, गुरूनानक, कबीर, आदि के नाम प्रमुखता से लिए जाते है।इन कवियों की भाषा मिश्रित है किन्तु इनका अध्ययन हिन्दी साहित्य मे ही किया जाता है।3