महादेवी वर्मा के साहित्य में वेदना और ममता की प्रधानता

Authors

  • डॉ शिवदयाल पटेल Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/ad1m4y47

Abstract

हिन्दी गद्य साहित्य में नारी विमर्श का प्रारम्भ छायावाद से माना जाता है। महादेवी वर्मा   नारी जीवन की अनेक समस्याओं को उजागर किया  है। महादेवी वर्मा ने अपने गद्य साहित्य में नारी की विभिन्न समस्याओं क® उजागर किया है। इनका निबंध ‘शृंखला की कड़ियाँ’ नारी विमर्”ा का सार्थक उदाहरण है। उन्होने नारियों की दीन-हीन दशा पर जो कार्य किया है, उसकी कल्पना करना कठिन है। नारियों के हितों की र{ाा के लि, जीवन भर कार्य करती रहीं। क्य¨ंकि वे खुद ही एक नारी थी इसलिए, उनकी समस्याओ  भली भाँति जानती और समझती थी ं। नारियों  की दशा को व्यक्त करती हुई लिखती है-‘‘पुरुष के अन्धानुसरण ने स्त्री के व्यक्तित्व को अपना दर्पण बनाकर उसकी उपयोगिता तो सीमित कर ही दी, साथ ही समाज का भी अपू.र्ण बना दिया। पुरुष समाज का न्याय है, स्त्री दया( पुरुष प्रतिशोधमय क्रोध है स्त्री {करुणामय्ा ( पुरुष का कत्र्तव्य है, स्त्री सरस सहानुभूति और पुरुष बल है, स्त्री हृदय की प्रेरणा।’’ महादेवी वर्मा छायावाद की एक प्रतिनिधि हस्ताक्षर हैं। छायावाद का युग उथल-पुथल का युग था। राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आदि सभी स्तरों पर विभ्रम, द्वंद्व, संघर्ष और आंदोलन इस युग की विशेषता थी। इस पृष्ठभूमि में, अन्य संवेदनशील कवियों के समान ही, महादेवी ने भी अपनी रचनाशीलता का उपयोग किया। यहाँ हमारा लक्ष्य छायावादी युग की सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि की विशद व्याख्या करना नहीं है। किंतु, यहाँ हमें इस बात को ध्यान में रखकर अवश्य आगे बढ़ना है कि कवि अपने समय की वास्तविकता, यथार्थ से प्रभावित होकर अपनी रचनाओं में उसकी विशिष्ट प्रवृत्तियों को अभिव्यक्ति देता है और उसकी रचनाएँ ही उस युग-विशेष की मूल प्रवृत्ति को रूपायित करती हैं। लेकिन महादेवीजी अपनी काव्य रचनाओं में प्रायः अंतर्मुखी रही हैं। अपनी व्यथा, वेदना और रहस्य भावना को ही इन्होंने मुखरित किया है। उनकी कविता का मुख्य स्वर आध्यात्मिकता ही अधिक दिखायी देता है। यद्यपि उनका गद्य रचनाओं में उनका उदार और सामाजिक व्यक्तित्व काफी मुखर है। इस पेपर  में हम उनकी कविता में वेदना के भाव की व्याख्या करेंगे।

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2013-2025

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Articles