मैत्रेयी की स्त्री को प्रतिकार नहीं अधिकार चाहिए
DOI:
https://doi.org/10.8855/k6ptms32Abstract
मैत्रेयी पुष्पा ने स्त्री और उसके अधिकारों से जुड़े प्रश्नों को अपने उपन्यासों की कथा का आधार बनाया है। उनके द्वारा उठाए गए प्रश्न अत्यंत आधुनिक हैं। इनके स्त्री पात्रों में पैनी सहनशीलता और संघर्षशीलता दिखाई देती है। मैत्रेयी जी के स्त्री पात्रों की यह खूबी है कि ये केवल लड़ने के लिए अपने विरोधियों से नहीं लड़ते, इनकी इस लड़ाई के पीछे इनका कोई न कोई मकसद अवश्य होता है। मुख्यतः यह मकसद स्त्री द्वारा खुद की अस्मिता की तलाश करना और समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज कर अपने अधिकारों की मांग करना होता है। उनके सभी उपन्यासों में एक जुझारू स्त्री पात्र के दर्शन अवश्य होते हैं। मैत्रेयी जी अपनी कलम से जो कुछ भी लिखती हैं उसे पढ़कर पाठक आत्ममंथन के लिए मजबूर हो जाते हैं। इनके उपन्यासों की स्त्री अपने जीवन में अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझती नज़र आती है लेकिन अंत में अपने अस्तित्व को पहचानकर वह आने वाली समस्याओं का अपनी समझबूझ से दृढ़तापूर्वक सामना करती है। मैत्रेयी जी के लगभग सभी उपन्यास समाज व स्त्री के जीवन की अनेक वास्तविकताओं तथा अनेक प्रकार की समस्याओं से अनायास ही जुड़ जाते हैं। इनके उपन्यासों के स्त्री पात्र जुझारू होने के साथ-साथ कर्मठ और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी हैं। मैत्रेयी जी ने अपनी साहित्य रचनाओं के माध्यम से ग्रामीण और शहरी महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया है।