अमृतलाल नागर जी के उपन्यासों में नारी चेतना
DOI:
https://doi.org/10.8855/p7m2jt24Abstract
प्रत्येक शब्द का अपना एक स्वतंत्र इतिहास होता है| एक स्वतंत्र अस्तित्व होता है| नारी चिंतन के सन्दर्भ में यदि बात की जाएँ तो हम पाते हैं कि नारी प्रकृति रूपा है | नारी को आदिकाल से ही सृष्टि की संचालिका माना जाता है| उसके बिना इस जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती| नारी सदैव की पुरुषों की प्रेरणा रही है| वह पुरुषों को निराशा में आशा देती है, दुःख में सान्तवना देती है और उसके कर्मों को उत्साह से भरने का कार्य करती है|
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Published
2013-2024
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Articles