वैदिक षिक्षा से आधुनिक षिक्षा तक: नैतिक मूल्यों की यात्रा और आज की प्रासंगिकता

Authors

  • अनामिका  व्यास डाॅ. पूजा गुप्ता Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/m6rmwe92

Abstract

प्राचीन भारत की वैदिक शिक्षा पद्धति केवल ज्ञान अर्जन का माध्यम नहीं थी, बल्कि यह जीवन के सर्वांगीण विकास का साधन थी, जिसमें नैतिक और चारित्रिक मूल्य सर्वाेपरि स्थान रखते थे। ऋषि-मुनियों द्वारा संचालित गुरुकुल व्यवस्था में सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, संयम, कर्तव्यनिष्ठा और समाज सेवा जैसे नैतिक आदर्शों को विद्यार्थियों के जीवन में व्यावहारिक रूप से स्थापित किया जाता था। कालक्रम में भारत की शिक्षा पद्धति ने अनेक बदलाव देखे। मध्यकाल में जहाँ शिक्षा धार्मिक और शास्त्रीय अध्ययन तक सीमित हो गई, वहीं औपनिवेशिक काल में पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव के कारण नैतिक शिक्षा का मूल स्वरूप कमजोर होता चला गया। स्वतंत्रता के पश्चात भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ, जिसने विज्ञान और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा दिया, परंतु नैतिक मूल्यों के क्षरण की चुनौती भी प्रस्तुत की। आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में जब नैतिक पतन, भौतिकतावाद और व्यक्तिगत स्वार्थ की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, वैदिक शिक्षा से प्राप्त नैतिक शिक्षाएँ अत्यंत प्रासंगिक हो जाती हैं। यह शोध पत्र वैदिक शिक्षा से आधुनिक शिक्षा तक नैतिक मूल्यों के विकास और परिवर्तन की यात्रा का विश्लेषण करेगा और यह भी स्पष्ट करेगा कि वर्तमान समय में उन प्राचीन मूल्यों की पुनस्र्थापना क्यों आवश्यक है। इस अध्ययन के माध्यम से यह संदेश दिया जाएगा कि नैतिकता के बिना शिक्षा अधूरी है और वर्तमान समय में शिक्षा प्रणाली में नैतिक मूल्यों के पुनः समावेश से ही एक संतुलित और जिम्मेदार समाज की स्थापना संभव है।

 

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2013-2025

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Articles