मध्य गंगा घाटी में प्रारम्भिक लौह युगीन और आरम्भिक ऐतिहासिक युगीन कला

Authors

  • डा0 सुबास चन्द पाल Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/q4p7js64

Abstract


लोहे के प्रचलन के प्रारम्भिक समय में वास्तु कला में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ था। लेकिन एन. बी. पी. संस्कृति के मध्यकाल से कई नवीन आयाम प्रकाश में आने लगे। पक्की ईटों से भवन निर्माण कला के क्षेत्र में भी इस काल में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस दिशा में सर्वत्र एक जैसी प्रगति हुई। अधिकांश उत्खनन सीमित तथा सूच्यांक (इन्डेक्स) प्रकार के हैं इसलिए वास्तुकला के विषय में प्राप्त जानकारी अपूर्ण एवं एकांगी है। यद्यपि इस काल में भी मिट्टी, घास-फूस और बांस- बल्ली के बने हुए कच्चे मकानों का निर्माण होता रहा तथापि मट्टे में पकाई गई ईटों का प्रयोग भवनों के निर्माण के लिए अधिकाधिक मात्रा में होने लगा। हस्तिनापुर, अतरंजीखेड़ा मथुरा, कौशाम्बी, राजघाट, उज्जैन तथा बहाल के उत्खननों में प्रमाण मिलते है।

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2013-2025

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Articles