स्वतंत्रता आंदोलन में आजमगढ़ मण्डल का योगदान

Authors

  • राजेश सिंह   and   प्रो. संतोषा कुमार Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/xkb7ap13

Abstract

       भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष लगभग 200 वर्षों तक भारत पर शासन करके उसका शोषण करने वाले अंग्रेजों के विरुद्ध किया गया था। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में भारतीय भूमि के प्रत्येक भू-भाग से अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठी इसमें क्या जमीदार? क्या किसान? क्या अमीर? क्या गरीब? क्या पुरुष? क्या महिलाएं? क्या जवान? क्या बूढे? क्या बच्चे? सभी ने भाग लिया। सर्वप्रथम धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलनों के माध्यम से राजा राममोहन राय, केशव चन्द्र सेन, दयानन्द सरस्वती, विवेकानन्द जैसे महापुरुषों ने भारतीय जनमानस में जागृति पैदा कर भारतीयों को हीन भावना से बाहर निकाला और अंग्रेजों के समक्ष भारतवासियों को सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ किया। अंग्रेजों की शोषणपरक नीतियों के विरुद्ध छोटे-छोटे स्तरों पर किसानों, आदिवासियों एवं राजघरानो ने संघर्ष किया लेकिन भारतीय स्तर पर अंग्रेज गवर्नर जनरल डलहौजी की नीतियों (राज्य हड़प नीति ने विशेष तौर पर) ने राज्यों के अन्दर भय का माहौल पैदा कर दिया। 1856 ई. में रायल एनफील्ड राइफल की कारतूस में गाय एवं सूअर की चर्बी लगी होने की बात ने आग में घी का काम किया, परिणाम स्वरुप 1857 का विद्रोह हुआ जिसने कम्पनी शासन समाप्त कर भारतीयों को सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया इस परिवर्तन के बाद भी अंग्रेजी शोषण कम नहीं हुआ। जिसके कारण समय-समय पर बंगभंग एवं स्वदेशी आंदोलन, होमरुल लीग आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन भारत की आजादी के समय तक चलते रहे। भारतीयों ने अंग्रेजों के विरुद्ध अनुनय-विनय, सत्याग्रह, असहयोग, स्वदेशी एवं रचनात्मक कार्यक्रमों के साथ हिंसक गतिविधियों का सहारा लिया। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में यूनाइटेड प्रोविन्स आफ आगरा एंड अवध के क्षेत्र के रुप में आजमगढ़ मण्डल ने भारत के अन्य क्षेत्रों की भाँति अपना योगदान दिया एवं देशवासियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया।

 

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Published

2013-2025