नरेश मेहता के काव्य में रसानुभूति में बिम्ब सौष्ठव

Authors

  • बोहती देवी Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/6jnmt737

Abstract

रस काव्य का प्राण है। रस के अभाव में काव्य का काव्यत्व नष्ट हो जाता है। अतः काव्य की दृष्टि से रस प्रमुख है। रसस्यतोऽसौ इति रसः के अनुसार जिससे आस्वाद मिले वही रस है। तात्पर्य है जिससे आनन्द की प्राप्ति हो वही रस है। काव्य वही श्रेष्ठ है जिसको पढ़कर पाठक आनन्द विभोर हो जाए और अपने स्वरूप को भूल कर उसी में तन्मय हो जाये।

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Published

2013-2024

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Articles