किशोरियों के सशक्तिकरण में समाज एवं महाविद्यालय की भूमिका

Authors

  • G. Seshu Babu Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/h86tk261

Abstract

इसे  मानव जीवन की जटिल अवस्था भी कहा गया है क्योंकि इस अवस्था में बालक को ना तो बालक कह सकते हैं ना ही प्रौंढ व्यक्ति ही कह सकते हैं। वह स्वयं भी असमंजस्य की स्थिति में रहता है। इस अवस्था में बालक के शारीरिक ,मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक गुणों में परिवर्तन होता है जो की स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है । किशोरावस्था में होने वाले सभी परिवर्तन परिपक्वता को प्राप्त करने के लिए अग्रसारित होते हैं।एक किशोर के लिए परिपक्वता का अर्थ होता हैवयस्कों के समान अधिकार एवं सुविधाएं प्राप्त करना।इस समय बालक के अंदरशारीरिक एवं मानसिक गुणों में परिपक्वताआ जाती है।वास्तव में किशोरावस्थाप्रौंढत्व के तैयारी की अवस्था है, जब बालक एवं बालिकाएं प्रौंढ़ौचित व्यवहारतथाअभिवृत्तियों का विकास कर लेते हैं । किशोरावस्था का तात्पर्य है– परिपक्वता की ओर बढ़ना।

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Published

2013-2024

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Articles