सांस्कृतिक विकास

Authors

  • डाॅ0 पूनम भूषण Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/sn0ydk10

Abstract

मानव में ही वह अद्भुत शक्ति एवं क्षमता मौजूद हैं कि वह संस्कृति का निर्माता कहलाने का अधिकारी है । ये क्षमताएं मानव में शारीरिक बनावट के कारण है। ‘‘संस्कृति‘‘ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है। संस्कृत और  संस्कृति दोनों शब्द संस्कार से बने है। संस्कार का अर्थ है कुछ कृत्यों की पूर्ति करना। सांस्कृतिक विकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है। हमारे पूर्वजों ने बहुत सी बातें अपने  पुरखों से सीखी है। हमने भी अपने पूर्वजों से बहुत कुछ सीखा, जैसे समय बीतता है हम उनसे नये विचार, नई भावनाएं जोड़ते चले जाते है और इसी प्रकार जो हम उपयोगी नही समझते उसे छोड़ते जाते है। अविष्कार और प्रसार द्वारा संस्कृतियों का रूप बदलता है, अन्य संस्कृतियों के तत्व कई कारणों से ग्रहण किये जाते है। कुछ तो दबाव के कारण अपनाएं जाते ह,ै कुछ नवीनता के लिए। कुछ सुविधा और लाभ के लिये, कुछ नवीन तत्व प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपनायें जाते है।

Downloads

Published

2013-2024

Issue

Section

Articles