हिन्दी साहित्य में आदिवासी विचारधारा

Authors

  • श्रीमती उमा चौधरी Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/qj3mp348

Abstract

आदिवासी समाज व साहित्य में नाभि-नाल का रिश्ता है।आदिवासी समाज क्या है उसके मूल्य क्या हैं। आदिवासी साहित्य जानने से पहले जितना आदिवासी समाज को समझना जरुरी है उतना ही जरुरी है आदिवासी समाज को समझने के लिए उनके वाचिक साहित्य को जानना। आदिवासी साहित्य जीवनवादी साहित्य है। जहाँ तक साहित्य की विषयवस्तु का सवाल है तो आदिवासी साहित्य की शुरुवात ही जीवन से होती है प्रकृति से होती है और ये दोनों यथार्थ से जुड़े हैं। जब हम आदिवासी साहित्य की चर्चा करते हैं तो यह भी एक खुरदुरेपन से शुरु होता है। लोग पुछते हैं कि आदिवासी साहित्य क्या है, इसमें कितना आकर्षण है, कितना सौंदर्य है, यह कब तक चलेगा और इसकी उम्र क्या होगी। इन प्रश्नों का एक ही उत्तर है कि जब तक समाज में जातीय वर्गीकरण या या समाज का वर्गीकरण होता रहेगा। इसकी उम्र भी लम्बी होती जाएगी। जब तक समाज में समरुपता नहीं आयेगी, तब तक आदिवासी जो वंचित समाज है अपने हक के लिए लड़ता रहेगा।

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Published

2013-2024

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Articles