बाल साहित्य का वर्तमान औचित्य
DOI:
https://doi.org/10.8855/1qt65v46Abstract
आज भारत को विश्व का सबसे बडा तरूण व युवा देश कहलाने का सौभाग्य प्राप्त है, क्योंकी हमारी जनसंख्या का अधिकांश भाग युवा है।यह स्थिती जितनी गौरावशाली है उतनी ही संवेदनशील भी। अगर युवा अनुशासन और संस्कार के मूल्य नहीं समझते तो देश की उर्जा को सही दिशा दे पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जायेगा, तथा दिशा निर्धारण की यह महती तैयारी की जिम्मेदारी देश के बालकों यानि उनके बचपन से ही आरंभ होनी चाहिए। बाल मनोविज्ञान के अनुसार बच्चे के जन्म से लेकर लगभग आठ वर्षों तक का विकास किसी भी बालक व बालिका के जीवन की नींव होता है । इस कालावधि में वे सबसे अधिक चंचल, मासूम, निरीक्षक,उत्सुक और निर्भय होते हैं। उनका मस्तिष्क सीखने के लिए इतना सश्क्त होता है कि वे दुनिया कि तमाम भाषाएं सहज ही सीखने की योग्यता रखते हैं। ऎसे में बाल्यकाल में वे जो साहित्य पढें वह संस्कार, नैतिकता व संस्कृति के मूल्यों से भरा हो यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। वर्तमान समय विश्वग्राम चेतना के साथ आगे बढने का समय है, तो हम चितकों के लिए यह सोचने श्रेष्ठ बाल साहित्य रचने का जिससे हमारे देश के कर्णधार न केवल देश के लिए वरन विश्व के लिए उत्तम नागरिक बन सकें।