हिन्दी कविता का ऐतिहासिक सर्वेक्षण : कवि सरोकारों के संदर्भ में
DOI:
https://doi.org/10.8855/1qf2vs31Abstract
काव्य मनुष्य के मनोभावों और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। मनुष्य के जीवन की सूक्ष्म अनुभूतियों का प्रस्फुटन कविता के द्वारा किया जा सकता है। कविता का लक्ष्य मात्र मनोरंजन या उपभोग ही नहीं, वरन विद्रोह और बदलाव के पक्ष में जनता को खड़ा करना भी है। कविता में कल्पना, भावना व यथार्थ, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, सभ्यता-संस्कृति, समाज व राजनीति, भूत, भविष्य एवं वर्तमान सभी समाहित हैं। अतः इसम जीवन-सौदर्य के साथ-साथ जीवन सत्य भी समाहित है। कोई भी कवि अपने समय-समाज और अपनी मानसिकता से टूट कर काव्य रचना नहीं कर पाता। उसके काव्य में उसके द्वारा देखे–भोगे यथार्थ का चित्रण अनायास ही हो जाता है। इसी से हमें कवि और उसके काव्य के सरोकारों का पता चलता है। विश्व की प्रमुख भाषाओं के साहित्य की तरह ही हिन्दी साहित्य में भी प्रारम्भ से ही कविता विधा की महत्ता रही है। साहित्य की प्रत्येक विधा में समय-समय पर परिवर्तन होते रहे हैं। काव्य भी इसका अपवाद नहीं रहा। हिन्दी कविता की इस हज़ार वर्षीय यात्रा को हम विद्वानों द्वारा विभाजित चार कालखण्डों- आदिकाल (सं. 1050 से 1375 तक), भक्तिकाल (सं. 1375 से 1700 तक), रीतिकाल (सं. 1700 से 1900 तक) और आधुनिक काल (सं. 1900 से अब तक) में विकसित होता हुआ देख सकते हैं: