हिंदी प्रदेश का नवजागरण और भारतेंदु हरिश्चंद्र

Authors

  • डॉ.संतोष रोड़े Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/b1f2as82

Abstract

भारतीय नवजागरण बहुपरतदार हैं इसमें कहीं सुधारवाद की प्रधानता हैं,कहीं राष्ट्रिय जागरण की,तो कहीं दलित चेतना की हैं| पुनरुत्थान का स्वर किसी न किसी रूप में कहीं कम कहीं ज्यादा हर जगह मौजूद हैं| भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी नवजागरण के प्रधान अग्रदूत माने जाते हैं| उन्होंने बंगला नवजागरण से प्रेरणा ली थी किन्तु उनकी नवजागरण की कल्पना बांग्ला नवजागरण तक सीमित नहीं हैं|भारतीय प्रान्तों की तरह हिंदी क्षेत्र में भी 19वीं सदी में नये ढंग की शिक्षा और पत्रकारिता का उदय हो रहा था| नई - नई साहित्यिक गतिविधियोँ से एक नये युग की शुरुआत हो रही थी, भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी ने की उन्नति में ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी उनका का साहित्य एक ऐसे काल की उपज है,जिसके एक छोर पर भारतीय किसानों तथा सिपाहियों का राष्ट्रिय विद्रोह हैं और दूसरे छोर पर ह्युम के नेतृत्व में राष्ट्रिय कांग्रेस का जन्म | भारतीय नवजागरण की खासियत यह है कि यूरोपीय संपर्क से हासिल आधुनिक ज्ञान- विज्ञान आत्मसात करके भारतीय समाज को एक आधुनिक समाज बनाने की कोशिश की है| 19 सदी में नवजागरण की चेतना फ़ैलाने में शिक्षा की भूमिका सबसे बुनियादी थी| भारत के स्वाधीनता आन्दोलन को व्यापक अर्थो में राष्ट्रिय नवजागरण मानना होगा यह दासता से मुक्ति का आन्दोलन था | नवजागरण के आंदोलन का पहला कदम था फिरंगी हुकमत से आजादी | इस आंदोलन के दो पक्ष थे एक राजनीतिक पक्ष और दूसरा समाजसुधार का, तत्कालीन भारतीय समाज में रूढ़ियाँ ,परम्पराए, जातीयता ,और पाखंड समाज में व्याप्त था| हिंदी क्षेत्र में मूलतः पुनर्जागरण की शुरुआत 1857 ई. के प्रथम स्वाधीनता संग्राम से मानी जाती है,सामाजिक क्षेत्र में पुनर्जागरण का आरंभ प्रमुखतः आर्य समाज की स्थापना और उसके आन्दोलन के साथ हुआ |

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Published

2013-2024