हिंदी संत साहित्य का विकास

Authors

  • संजय मिंज and  डाॅ. राजकुमार उपाध्याय ‘मणि’ Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/4wfz3v81

Abstract


                   संत साहित्य के विकास पर प्रकाष डालने से पूर्व संत साहित्य शब्द की सार्थकता को पूर्णरूपेण समझना अपेक्षित है। हिंदी साहित्य में सामान्यतः निर्गुण ब्रह्मा के उपासकों ‘सूफियों को छोड़कर’ अन्य को संत कहा जाता है और सगुण (साकार) रूप के उपासकों को भक्त कहा जाता है। यद्यपि यह भेद केवल व्यावहारिक है। वह धार्मिक साहित्य जो निर्गुण भक्तों द्वारा रचा जाता है उसे संत साहित्य कहा जाता है। वास्तविकता मे ंतो सभी भक्त संत थे और सभी संत भक्त थे। सभी का उद्देष्य लोकमंगल ही है चाहे संत हो अथवा भक्त लेकिन आधुनिक साहित्य में निर्गुण उपासकों को ‘संत’ के नाम से उद्बोधित किया जाने लगा है।

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Published

2013-2024