वागड़ में शिक्षा के लिए स्वतंत्रता पूर्व भील शहादतें - नाना भाई और वीर बाला कालीबाई
DOI:
https://doi.org/10.8855/yfsxnr04Abstract
वागड़ क्षेत्र (डूंगरपुर और बांसवाड़ा) का ऐतिहासिक परिदृश्य सामंती शासन और भील समुदाय के संघर्षों से चिह्नित है। डूंगरपुर रियासत, जो 1282 में रावल वीर सिंह द्वारा स्थापित हुई, में सामंती अत्याचार और शिक्षा का अभाव प्रबल था। गोविंद गुरु और भोगीलाल पंड्या ने भगत आंदोलन और वागड़ सेवा मंदिर के माध्यम से भील समुदाय में शिक्षा और जागरूकता का प्रसार किया। 1944 में स्थापित डूंगरपुर प्रजामंडल ने रियासत में उत्तरदायी शासन की स्थापना, नागरिक अधिकारों की रक्षा,सामंती शोषण, बेगार प्रथा और करों के खिलाफ आंदोलन चलाया, साथ ही पालों( गांवों का समूह को कहा जाता है।) में नागरिकों को जागरूक करने के लिए पाठशालाएं स्थापित कीं। इनमें प्रमुख पाठशालाएं -रास्तापाल और पुनावाड़ा थी। रास्तापाल हत्याकांड (19 जून 1947) में शिक्षक नाना भाई खांट और शिष्या कालीबाई की शहादत ने शिक्षा के लिए बलिदान का प्रतीक स्थापित किया। प्रजामंडल की गतिविधियों ने साक्षरता, सामाजिक सुधार और प्रजातांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा दिया, जिसके परिणामस्वरूप डूंगरपुर महारावल लक्ष्मण सिंह ने दिसंबर 1947 में राज्य प्रबंध कारिणी सभा की स्थापना हुई। इस आंदोलन ने वागड़ में शिक्षा और स्वतंत्रता की नींव रखी।