वर्तमान सामाजिक चुनौतियाॅ और गीता का कर्मयोगः समाधान की ओर एक दृष्टि

Authors

  • डाॅ.मीना पाण्डेय  Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/vc25as53

Abstract


आज के युग में हम पाते हैं कि अधिकांश व्यक्ति केवल स्वार्थ सिद्धि के लिए कर्म करते हैं उचित़-अनुचित कर्म में भी भेद नहीं कर पाते यही कारण है कि उसने प्रकृति का दोहन कुछ इस प्रकार किया है कि आज उसे स्वयं ग्लोबल वार्मिंग, बाढ,़ भूकंप इत्यादि प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसी प्रकार अपने निकृष्ट स्वार्थ की पूर्ति के लिए विश्व में घृणित अपराध किया जा रहे हैं चारों ओर आतंक, अशांति, पापाचार एवं भय फैला हुआ है तकनीकी प्रगति का दुरुपयोग होने कारण इससे जुड़े हुए कई अपराध निरन्तर बढते  जा रहे हैं। फलस्वरुप विश्व में सुख, शांति यहां तक की उसका अस्तित्व भी खतरे में है। भौतिक साघनों की सम्पन्नता ने व्यक्ति को श्रम से दूर कर दिया है। इससे कर्म की महत्ता का भी हृास हुआ है। फल के असक्ति से किये गये कर्मो ने समस्त विश्व में अशान्ति, अराजकता व अपराधिक मानसिकता का पोषण किया है।

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Published

2013-2024

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Articles