ऋग्वैदिक काल के संदर्भ में स्त्री उत्थान व सामाजिक संघर्ष
DOI:
https://doi.org/10.8855/sqmfez54Abstract
सृजनात्मक साहित्य का इतिहास यह प्रमाणित करता है कि ऋग्वेद से पूर्व किसी रचना का होना ज्ञात नहीं है। विद्वानों के मतभेद के बावजूद 1000 ई.पू. से पहले उनके होने की स्थिति पर कोई संदेह नहीं है। कुछ विद्वान इसकी समय सीमा 3000 ई.पू. तक भी मानने के पक्ष में हैं। सभ्यता, संस्कृति और रचनात्मकता के आरम्भिक काल में स्त्रियाँ सर्जनात्मक कार्य से किस प्रकार जुड़ती हैं, उनका अपना रचनात्मक संसार एवं सामाजिक स्थिति कैसी है इसे उनके रचनात्मक अनुभव से समझना ज्यादा समीचीन है। स्त्री तो पर्याय ही है सृजन का। एक नई जिन्दगी को रचते समय वह पीड़ा के जिस दौर से गुजरती है उसे हम सृजन की तैयारी के संदर्भ में समझ सकते हैं और फिर वह जब सृजन के कलात्मक जगत से जुड़ती है तब उसका यह पीड़ाबोध उसकी सहायता करता दिखाई देता है।