हिन्दी कविता में महात्मा बुद्ध
DOI:
https://doi.org/10.8855/7jtzy884Abstract
आज से 2500 वर्ष पूर्व भारत में लुम्बिनी साल वन में सिद्धार्थ के रूप में बुद्ध का आविर्भाव हुआ था। जब सिद्धार्थ कोलौकिक सुख से तंग आगया, तब वेसारे सुखों को त्याग कर संसार से दुःख को मिठाने का मार्ग ढूंढने निकले। तब उनकी उम्र उनतीस साल थी। उन्होंने बहुत कष्ट भोगे, बिना खाये- पिये ध्यान में लीन रहे। पर उससे कोई फल न पाने पर माध्यम मार्ग में आकर पैंतीस साल की अवधि मेंमहा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। तब से आज तक उनका उपदेश लोगों के मनः पटल में ऐसे चित्रित है जैसे पत्थर का लकीर। वेएक समाज सुधारक ही नहीं दार्शनिक, मनोविज्ञानी के रूप में भी हमारे सामने आते हैं। लोगों की मानसिकता को उनके सामाजिक परिवेश को समझ कर बुद्धा जी नेउपमा उपमेय के आधार से धार्मिक उपदेश दिया करते थे। उनकेये मधुर वाणी आज भी प्रासंगिक है। अदिकाल के हिन्दी कविताओं पर ही नहीं बल्कि आधुनिकहिन्दी कविताओं में भी उनके उपदेशों का भरमार झलक देखने को मिलता है।