उषा प्रियंवदा के साहित्य में स्त्री जागरण व चेतना।
DOI:
https://doi.org/10.8855/8cz20989Abstract
स्त्री को मुक्त करने के लिए जो व्यापक प्रयास चल रहे थे, उनका प्रभाव साहित्य पर भी दिखाई देने लगा है। सभी भाषाओं के साहित्य में समय-समय पर जो मौलिक विचार व्यक्त होते रहे हैं उनमें स्त्री मुक्ति और उनकी विभिन्न समस्याओं को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। उषा प्रियंवदा जी ने भी सामाजिक चुनौतियों को बड़ी सूक्ष्मता से समझा और उसकी अभिव्यक्ति अपनी कथाओं में बड़ी कुषलता से की है। उन्होंने बिखरते सामाजिक मूल्यों को संवारने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। उनका मानना है कि आधुनिक नारी अधिक स्वतन्त्र, स्वाबलंबी और आत्मनिर्भर हो चुकी है। आज नारी की स्वतंत्र अस्मिता है तथा वह अपने अधिकारों को हासिल करना चाहती है।
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2013-2024
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Section
Articles