पवनदूती काव्य में राधा का चरित्र-चित्रण
DOI:
https://doi.org/10.8855/58vk6a86Abstract
हिन्दी के कवि, निबन्धकार तथा सम्पादक अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘ का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान पर 15 अप्रैल सन 1865 को हुआ। इनके पिता जी का नाम पंडित भोलानाथ उपाध्याय व माता जी का रूक्मिणी देवी था। पांच वर्ष की आयु में इनके चाचा ने इन्हें फारसी पढ़ाना शुरू कर दिया था। 17 वर्ष की आयु में इनका विवाह निर्मला कुमारी के साथ हुआ। अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत और फारसी आदि भाषा का अध्ययन घर पर ही किया। हरिऔध जी ने निजामाबाद के मिडिल स्कूल में अध्यापन का कार्य किया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अवैतनिक शिक्षक के रूप में अध्यापन कार्य किया। अध्यापन कार्य से मुक्त होने के बाद साहित्यिक सेवा में ‘हरिऔध‘ जी ने ख्याति अर्जित की। ‘प्रिय-प्रवास‘ रचना पर हिन्दी का सर्वोत्तम पुरस्कार ‘मंगला प्रसाद‘ पारितोषिक से सम्मानित किया गया। यह खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है। उपाध्याय जी प्रारम्भ में बृज भाषा में कविता किया करते थे, परन्तु महावीर प्रसाद द्विवेदी के प्रभाव से ये खड़ी बोली के क्षेत्र में आए और खड़ी बोली को नया रूप प्रदान करते हुए नवीन दृष्टिकोण से अपने विचार प्रस्तुत किए। अनेक वर्षों तक साहित्य साधना में रत रहने वाले ‘हरिऔध‘ का निधन सन् 1947 में हो गया।