छायावाद की प्रवृतियां

Authors

  • Dr Kamna Kaushik Author

DOI:

https://doi.org/10.8855/zem64j90

Abstract

द्विवेदी युग की काव्यगत इतिवृत्तात्मकता, स्थूलता, आदर्शो की प्रतिक्रिया और अंग्रेजी के रोमाण्टिक कवियों की काव्य रचना के अध्ययन के फलस्वरूप छायावाद का जन्म हुआ।  छायावाद के नामकरण का श्रेय ‘मुकुटधर पांडेय‘ को दिया जाता है। इन्होंने सर्वप्रथम 1920 ई॰ में जबलपुर से प्रकाशित श्री शारदा पत्रिका में ‘हिंदी में छायावाद‘ नामक चार निबंधों की एक लेखमाला प्रकाशित करवाई थी। मुकुटधर पाण्डेय ने सर्वप्रथम व्यंग्यात्मक रूप में छायावाद शब्द का स्वच्छन्दतावादी नवीन अभिव्यक्तिमय रचनाओं के लिए प्रयोग किया, जो बाद में इस कविता के लिए रूढ़ हो गया और स्वयं स्वच्छन्दतावादी कवियों ने इसे अपना लिया। आधुनिक हिंदी काव्य में छायावाद को ‘‘आधुनिक हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग‘‘ कहा जा सकता है। यह युग साहित्य के क्षेत्र में एक क्रांति था जिसमें कला पक्ष तथा भाव पक्ष दोनों दृष्टिकोण से उत्कर्ष का चरम दिखाई देता है। सन 1920 से सन 1936 तक के काव्य को छायावाद कहा जाता है। दो विश्व युद्धों के बीच सृजित स्वच्छन्दतावाद की कविता को सामान्यतः छायावाद के नाम से अभिहित किया गया। सन् 1918 से 1939 ईसवीं पर्यन्त छायावादी काव्य अपने पूर्ण यौवन के साथ हिन्दी साहित्य के रंगमंच पर अपनी मनोहारी अदाएँ दिखाता रहा। विद्वानों ने छायावादी काव्य को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया। उनमें से प्रमुख परिभाषाएं इस प्रकार से हैं 

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Published

2013-2024

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Articles