आधुनिक हिन्दी उपन्यासों में स्त्री विमर्श और पारिवारिक विघटन
DOI:
https://doi.org/10.8855/9nvkb008Abstract
यह कागज आधुनिक हिंदी उपन्यासों में महिला विमर्श और पारिवारिक विघटन के विषयों पर गंभीरता से विचार करता हैए जो साहित्य में उभरती सामाजिक परिवर्तन को प्रकट करता है। यह तेजी से बदलते समाजए बदलते लिंग भूमिकाएं और परिवारों की विकसित होती संरचनाओं के चित्रण का अध्ययन करता है और यह महिला स्वतंत्रताए आत्मनिर्भरता और पारिवारिक बंधनों के टूटने को मजबूत करता है। यह विश्लेषण ऐसे केंद्रीय वाद.विवादों के ढ़ांचों पर आधारित है जिनमें सामाजिक. सांस्कृतिक विश्वासए पीढ़ियों का टकराव एवं आर्थिक दबाव शामिल है जो महिलाओं के व्यक्तित्व एवं परिवार के ढ़ांचे को नये सिरे से बनाते हैं। चुने हुए उपन्यासों में स्त्री संरक्षण और स्वतंत्रता के बीच उठे तनावोंए पारम्परिक परिवार संस्थाओं की आलोचना और सहकारिता द्वारा स्त्री मुक्ति का महिमा.मण्डन हुआ है। साहित्यिक औजारों जैसे कि कथा शैलियाँए प्रतीकवादए और आपसी जुड़ाव तो ये रचनाएँ महिलायों के सामाज में हलचल का शिकार होने के सूक्ष्म स्तर का यथार्थ चित्रण करती हैं। यह अध्ययन इन कथनों को समाजशास्त्र के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानता है। इससे जागरूकताए नीतिगत बहस तथा शिक्षा में समावेशन हुआ है। इसका लक्ष्य लिंग समानता और सामाजिक सुधार है। अर्थातए आधुनिक हिन्दी उपन्यासों ने न केवल सामाजिक सत्य को प्रतिबिम्बित किया हैए बल्कि महिलाओं की स्थिति और परिवार के रूपांतरण की विषयवस्तु में योगदान दिया हैए साथ ही एक सच्चे व जागरूक समाज की वकालत की है।
